हेल्‍थ इंश्‍योरेंस: आवश्‍यकता या फ‍िजूलखर्ची?

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस: आवश्‍यकता या फ‍िजूलखर्ची?

सुमन कुमार

डेंगू से मौत के मामले में गुड़गांव के एक अस्‍पताल में पिछले साल 18 लाख रुपये का बिल आने के मामले ने एक बार फ‍िर यह सच्‍चाई उजागर कर दी कि देश के निजी अस्‍पतालों में इलाज का खर्च आम व्‍यक्ति अपनी कमाई से तो वहन नहीं कर सकता। जिस देश में 35 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रही हो वहां बीमारियों के इलाज का इतना मोटा बिल भरना कितना दुष्‍कर कार्य है यह सहज ही समझ में आ सकता है। इसे देखते हुए आधुनिक समय में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा की अवधारणा ने जोर पकड़ा है। आप साल भर के लिए कुछ रुपये प्रीमियम के रूप में चुकाइए और बदले में बीमा कंपनी किसी बीमारी की स्थिति में आपका खर्च उठाएगी।

बीमा क्‍यों लें

लेकिन स्‍वास्‍थ्‍य बीमा को लेकर अकसर लोगों के मन में कई सवाल उठते रहते हैं। सबसे पहला सवाल तो यही है कि ये बीमा लेना चाहिए या नहीं। आमतौर पर 30 साल की उम्र तक युवा किसी भी तरह की गंभीर बीमारी से मुक्‍त ही होते हैं। अपवादों को छोड़ दिया जाए तो उनका चिकित्‍सा बिल बहुत अधिक नहीं होता है। ऐसे में वो बीमा प्रीमियम पर होने वाले खर्च को अपने मासिक बजट पर एक बोझ की तरह देखते हैं। इसलिए उनके अंदर स्‍वास्‍थ्‍य बीमा को लेकर एक टालने वाला रवैया बन जाता है जो साल दर साल बढ़ता ही जाता है और जब सही में उन्‍हें चेत जाना चाहिए तब भी वो सचेत नहीं हो पाते।

सही उम्र में लेना समझदारी

आम तौर पर यह देखा गया है कि उम्र के 40 साल पार कर लेने के बाद डॉक्‍टरों के चक्‍कर लगने शुरू हो जाते हैं मगर तब तक ये टालने वाला रवैया आदत बन चुका होता है और लोग बीमा नहीं कराते और ऐसे में किसी भी तरह की गंभीर बीमारी जीवन के इस पड़ाव तक कमाई गई अधिकांश कमाई को चट करने के लिए तैयार रहती है।

दूसरी बाद उम्र बढ़ने के बाद अगर आप बीमा खरीदने जाते हैं तो कंपनियां आपसे ज्‍यादा पैसा लेती हैं और कई बीमारियों को कवर भी नहीं करतीं। जबकि यदि आप कम उम्र में बीमा खरीदते हैं तो आपका प्रीमियम कम रहता है और यदि आप कई सालों तो इस बीमा को बढ़ाते रहते हैं तो कंपनियां आपको प्रीमियम में छूट देने के साथ-साथ सभी बीमारियों का कवर भी देती रहती हैं। इसलिए बेहतर है कि नौकरी या अपने कारोबार की शुरुआत के साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य बीमा ले ली जाए।

किस प्रकार चुनें बीमा

अब सवाल है कि बीमा पॉलिसी का चयन किस तरह किया जाए। व्‍यक्तिगत बीमा लेने की बजाय फैमिली बीमा लेना हमेशा फायदे का सौदा होता है। अलग-अलग कंपनियां पूरे परिवार के लिए कई तरह की बीमा पॉलिसी ऑफर करती हैं। इनमें पति-पत्‍नी, बच्‍चे और माता-पिता सब शामिल किए जा सकते हैं। एक उदाहरण से हम ये समझ सकते हैं कि व्‍यक्तिगत बीमा की बजाय पारिवारिक बीमा क्‍यों बेहतर है। मान लीजिये कि आपके परिवार में माता-पिता, दो बच्‍चे और आप पति-पत्‍नी हैं। तो इन छह लोगों के लिए हर व्‍यक्ति के लिए आपने अलग-अलग एक-एक लाख रुपये का बीमा करवाया। यह राशि इतनी कम है कि यदि इन छह में से कोई एक किसी छोटी-मोटी बीमारी से भी पीडि़त हुआ तो सामान्‍य इलाज में ही इतना पैसा लग जाएगा। अब अगर आप पूरे परिवार के लिए कुल मिलाकर 6 लाख रुपये का बीमा लेते हैं तो संभव है कि आपको प्रीमियम भी कम भरना पड़े और हर व्‍यक्ति के इलाज के लिए छह लाख रुपये का बीमा आपके पास होगा। अगर परिवार में किसी एक साल में कोई एक ही व्‍यक्ति गंभीर रूप से बीमार हुआ तो पूरे छह लाख रुपये उसके इलाज पर खर्च हो सकते हैं।

बुजुर्गों को शामिल करना फायदेमंद

परिवार बीमा में घर के बुजुर्गों को शामिल करना हमेशा अच्‍छा होता है हालांकि यह देखने वाली बात है कि कंपनियां इसके लिए तैयार होती हैं या नहीं। अगर आप किसी कॉरपोरेट हाउस में नौकरी कर रहे हैं तो अधिकांश ऐसे कॉरपोरेट हाउस अपने कर्मचारियों को समूह स्‍वास्‍थ्‍य बीमा की सुविधा प्रदान करते हैं। इसमें अपने आश्रित माता-पिता का नाम आराम से शामिल किया जा सकता है क्‍योंकि ऐसी पॉलिसीज के लिए कंपनियां पहले से ही बीमा कंपनियों के साथ डील कर चुकी होती हैं।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।